सूचना, सच्चाई और मीडिया का मकड़ - जाल...

प्रतीकात्मक चित्र



 मीडिया का मूल उद्देश्य रहा है --- लोगों तक निष्पक्ष, तथ्यपूर्ण और सटीक जानकारी पहुंचाना। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला यह माध्यम कभी सत्ता और जनता के बीच संवाद का पुल था, जो समाज में जागरूकता, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को जन्म देता था।

किंतु आज वह पुल दरक रहा है --- और इसके साथ दरक रही है लोकतंत्र की वह नींव, जो सूचना पर टिकी थी।

🛑 गिरती विश्वसनीयता: कारण

1. सनसनी और अफवाह की पत्रकारिता

गंभीर और जनहित के मुद्दों को दरकिनार कर, मीडिया अब छोटी खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने, अफवाहें फैलाने और विवादों को बेवजह तूल देने में व्यस्त है। न्यूज़ चैनलों की हेडलाइनों में अब "सबसे बड़ा खुलासा", "देखिए कैसे..." जैसे उत्तेजक शब्द आम हो गए हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जनता का ध्यान वास्तविक समस्याओं से हटकर भावनात्मक और भ्रमित करने वाले मुद्दों पर चला जाता है।

2. राजनीतिक और कॉर्पोरेट हस्तक्षेप

मीडिया की निष्पक्षता पर राजनीतिक दलों और कॉर्पोरेट समूहों का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार समाचार किसी विशेष एजेंडे को बढ़ावा देने का साधन बन जाते हैं। परिणामस्वरूप, महत्वपूर्ण विषय या तो दबा दिए जाते हैं या तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किए जाते हैं।

3. पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता पर खतरा

भारत की प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग (159/180) यह दर्शाती है कि वैश्विक समुदाय का मानना है कि भारत में पत्रकारों को धमकियों, मुकदमों और सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है। इससे स्वतंत्र, निष्पक्ष और साहसी पत्रकारिता बाधित होती है।

🌍 भारत की वैश्विक रैंकिंग और मीडिया की भूमिका

भारत की निम्न वैश्विक रैंकिंग यह स्पष्ट करती है कि देश को कई मोर्चों पर गंभीर चुनौतियों का सामना है। ऐसे में मीडिया को चाहिए कि वह इन आंकड़ों को केवल रिपोर्टिंग के विषय नहीं, बल्कि जनचेतना और नीति-सुधार की प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करे:

सूचकांक भारत की रैंकिंग मीडिया से अपेक्षा वर्तमान स्थिति
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 105/127 ग्रामीण भारत में कुपोषण पर गंभीर संवाद सीमित रिपोर्टिंग, अक्सर चुनावी मुद्दों में दब जाता है
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 180/180 वायु प्रदूषण, जलवायु संकट पर जनजागरण मौसम की खबरों तक सीमित; नीति विमर्श लगभग नदारद
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI) 93/180 शासन की पारदर्शिता पर प्रश्न उठाना भ्रष्टाचार की खबरें छपती हैं, परंतु फॉलो-अप और निष्कर्ष दुर्लभ
डेमोक्रेसी इंडेक्स 53/167 लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर संवाद बहस का केंद्र अक्सर व्यक्तिगत बयानबाजी बन जाता है
प्रेस फ्रीडम रैंकिंग 159/180 पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर विमर्श केवल प्रेस संगठनों तक सीमित चिंता
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 126/143 मानसिक स्वास्थ्य, जीवन गुणवत्ता पर ध्यान कम रिपोर्टिंग, मनोरंजन की खबरें हावी

✅ हमें किस प्रकार के मीडिया की आवश्यकता है?

हमें ऐसे मीडिया की आवश्यकता है जो:

  • 🔹 निडर हो -- सच्चाई को बिना भय के सामने लाए।
  • 🔹 सत्यनिष्ठ हो -- हर खबर को निष्पक्षता और ईमानदारी से पेश करे।
  • 🔹 जनता के प्रति जवाबदेह हो -- लोगों के मुद्दों को प्राथमिकता दे, न कि सत्ता के एजेंडे को।

💡 समाधान की दिशा में कदम:

  • पत्रकारों की सुरक्षा के लिए स्वतंत्र संस्थान का गठन
  • स्कूलों में मीडिया साक्षरता शिक्षा को शामिल किया जाना
  • डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए पारदर्शी आचार संहिता
  • सकारात्मक, समाधान-केंद्रित पत्रकारिता को प्रोत्साहन

🔚 निष्कर्ष:

लोकतंत्र की शक्ति उसकी जागरूक जनता में निहित होती है, और जनता की जागरूकता का आधार एक जिम्मेदार मीडिया है। यदि मीडिया सत्ता का मुखपत्र बन जाए, तो जनता की आवाज़ खो जाती है। समय आ गया है कि हम पत्रकारिता को फिर से सत्य, साहस और सेवा के मूल्यों से जोड़ें --- तभी हम एक सशक्त और स्वस्थ लोकतंत्र की ओर बढ़ सकेंगे।

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