1975 की इमरजेंसी बनाम आज का मीडिया ट्रोलिंग

प्रतीकात्मक  चित्र

 

"भारत का लोकतंत्र प्रेस की स्वतंत्रता पर टिका हुआ है। लेकिन क्या आज की मीडिया सचमुच स्वतंत्र है? और क्या 1975 की इमरजेंसी के दौर की मीडिया सेंसरशिप से हमारा मीडिया बेहतर स्थिति में है?"

📅 1975 की इमरजेंसी: प्रेस पर प्रतिबंध

  • इमरजेंसी की घोषणा (25 जून 1975) के दौरान, सरकार ने देश की प्रेस पर कड़ा नियंत्रण लगा दिया।
  • सभी समाचारपत्रों, रेडियो और टीवी चैनलों की सामग्री को पहले मंजूरी लेनी पड़ती थी।
  • कई पत्रकारों को जेल में डाला गया और मीडिया पर सेंसरशिप का शासन था।
  • सरकार के आलोचक मीडिया हाउसों पर प्रतिबंध लगाए गए और विपक्षी आवाज़ दबा दी गई।
  • इस दौर को भारत के लिए लोकतंत्र पर हमला माना जाता है।

📺 आज का मीडिया: ट्रोलिंग और सेंसरशिप

  • आज मीडिया स्वतंत्र है लेकिन सोशल मीडिया ट्रोलिंग के ज़रिये पत्रकारों और आलोचकों को धमकाया जाता है।
  • कई बार राजनीतिक दबाव में आकर मीडिया हाउस सेल्फ-सेंसरशिप करने लगते हैं।
  • "फेक न्यूज़" और "प्रोपेगैंडा" के चलते जनता का मीडिया पर भरोसा कम हुआ है।
  • ट्रोलिंग के चलते पत्रकारों को अपना निजी जीवन भी छोड़ना पड़ता है।
  • मीडिया की स्वतंत्रता के नाम पर कभी-कभी ध्रुवीकरण और फेक रिपोर्टिंग भी देखने को मिलती है।
पहलू 1975 की इमरजेंसी आज का मीडिया ट्रोलिंग
मीडिया की स्वतंत्रता लगभग समाप्त, सख्त सेंसरशिप आधिकारिक स्वतंत्रता, पर ट्रोलिंग से दबाव
सरकारी हस्तक्षेप स्पष्ट और कानूनी अप्रत्यक्ष, दबाव और आत्म-सेंसरशिप
जनता की भूमिका सूचनाओं की कमी सोशल मीडिया से बड़ी सूचना उपलब्धता, लेकिन भ्रामक भी
पत्रकारों की सुरक्षा जेल और गिरफ्तारी ट्रोलिंग, धमकी और मानसिक तनाव
मीडिया का स्वरूप सीमित मीडिया प्लेटफॉर्म विविध डिजिटल प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया प्रभावी

🤔 क्या आज की मीडिया सच में स्वतंत्र है?

1975 में प्रेस को ज़बरदस्ती दबाया गया था, जबकि आज मीडिया को खुद को बचाने के लिए बहुत बार अपने आपको सीमित करना पड़ता है। ट्रोलिंग और दबाव के चलते पत्रकारों का काम कठिन हो गया है। आज की चुनौती है:

  • सत्य और निष्पक्षता बनाए रखना
  • ध्रुवीकरण और फेक न्यूज़ से लड़ना
  • मीडिया हाउसों का राजनीतिक दबाव से मुक्त रहना

🛡️ प्रेस की आज़ादी बचाने के लिए कदम

  • पत्रकारों के लिए सुरक्षा कानूनों का सख्ती से पालन
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रोलिंग रोकने के लिए प्रभावी नियम
  • मीडिया हाउसों में आत्म-संयम और नैतिकता को प्राथमिकता
  • जनता का सचेत और जागरूक होना, फेक न्यूज़ पर विश्वास न करना

निष्कर्ष

1975 की इमरजेंसी ने हमें यह सिखाया कि प्रेस की आज़ादी का संरक्षण लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। आज के दौर में, हालांकि प्रेस कानूनी रूप से स्वतंत्र है, लेकिन ट्रोलिंग और दबाव ने इसे नई चुनौतियाँ दी हैं। हमें इन चुनौतियों का सामना मिलकर करना होगा ताकि मीडिया का सत्याग्रह बना रहे और लोकतंत्र मजबूत हो।

💬 आपका क्या मानना है?
क्या आज का मीडिया सच में स्वतंत्र है? क्या ट्रोलिंग मीडिया की आज़ादी को खतरे में डाल रही है? अपने विचार कमेंट में साझा करें।

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