जाने कैसे होती है अर्थव्यवस्था की 'तेरहवीं'

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जब किसी देश में बेरोज़गारी बढ़ती है, तो यह धीरे-धीरे पूरी अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में ले लेती है। एक समस्या दूसरी को जन्म देती है। फिर दोनों मिलकर तीसरी को, फिर पहली, दूसरी, तीसरी मिलकर चौथी को, और इसी तरह यह सिलसिला चलता रहता है। यह चक्र इतना खतरनाक होता है कि यह पूरे समाज और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर देता है।

🔄 बेरोज़गारी और आर्थिक संकुचन के 13 चक्र

1 बेरोज़गारी बढ़ना

बेरोज़गारी बढ़ने से कई परिवारों की आय रुक जाती है। बेरोज़गार व उनके परिवार के लोग अपनी आजीविका के अलावा सभी खर्च लगभग खत्म कर देते हैं।

2 आय में कमी

बेरोज़गारी बढ़ने से अन्य रोजगार लोगों की आय में भी कमी होना। बेरोज़गारी बढ़ने से कम नौकरियों के लिए ज्यादा लोग उपलब्ध हो जाते हैं। इससे नियोक्ता कम सैलरी ऑफर करते हैं और नौकरीपेशा लोगों की आय कम हो जाती है।

3 खर्च में कटौती

आय में कमी वाले लोगो का भी अपने खर्चो में कटौती करना शुरू करना। आय में कमी वाले लोग और उनके परिवार हर तरह की खरीदारी और खर्चों में कटौती करने लगते हैं:

  • सामान्य खर्च: खाना (जैसे दूध, सब्जी, फल, अनाज आदि), कपड़े, बिजली-पानी का बिल
  • घरेलू खर्च: किराया, घर की मरम्मत, बर्तन, या फर्नीचर
  • शिक्षा: बच्चों की स्कूल फीस, किताबें, ट्यूशन, या कोचिंग
  • स्वास्थ्य: दवाइयाँ, डॉक्टर का खर्च, नियमित चेकअप
  • परिवहन: कैब, बस, ट्रेन, ऑटो, या पेट्रोल-डीजल का खर्च
  • अन्य खर्च: मनोरंजन, बाहर खाना, छुट्टियाँ, सैलून, हेयरकट, ब्यूटी प्रोडक्ट्स आदि
  • सामाजिक खर्च: शादी-ब्याह, त्योहार, उपहार

इससे बाजार में मांग कम हो जाती है, जिससे दुकानों, सर्विस आधारित रोजगार, और अन्य कारोबार प्रभावित होते हैं।

4 छोटे व्यवसायों में प्रतिस्पर्धा

बेरोज़गारी बढ़ने से लोग मजबूरी में छोटे व्यवसाय (जैसे ठेले, किराना दुकान, या स्टॉल आदि) शुरू करते हैं। इससे:

  • छोटे व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है
  • ग्राहक बँट जाते हैं, जिससे बिक्री प्रभावित होती है
  • छोटे कारोबारियों की आय घटती है
5 व्यवसायों द्वारा कर्मचारियों को निकालना

दुकानें, होटल, कंपनियाँ आदि भी बिक्री और कमाई घटने से:

  • कर्मचारियो को निकालती है या वेतन कम करती है
  • ये कर्मचारी भी अब बेरोज़गार या कम आय वाले बन जाते हैं
6 फैक्ट्रियों और कंपनियों का प्रभावित होना

दुकानदार कम सामान मंगवाते हैं, तो फैक्ट्रियों की बिक्री घटती है। फैक्ट्रियाँ भी अपने कर्मचारियों को निकालती हैं या वेतन कम करती हैं। ये कर्मचारी भी अब बेरोज़गार या कम आय वाले बन जाते हैं।

7 मजदूरों का बेरोज़गार होना

बढ़ती आर्थिक संकुचन की प्रक्रिया व आपूर्ति श्रिंखला के टूटने के कारण दुकानों, होटलों, गोदामों और बाज़ार में काम की मांग घटती है। मजदूरो में भी बेरोजगारी व आय कम होने की प्रक्रिया शुरू होती है। बेरोज़गार मजदूर भी अब जरूरी खर्चो में में और कमी करना शुरू करते हैं। चक्र और आगे बढ़ता है।

8 सेवा क्षेत्र का प्रभावित होना

सेवा क्षेत्र (Service Sector) जैसे कैब ड्राइवर, ऑटो चालक, डिलीवरी बॉय, प्लंबर, कारपेंटर, पेंटर आदि का प्रभावित होना। बाजार में मांग घटने से इन सेवाओं की ज़रूरत भी कम हो जाती है। जैसे:

  • लोग बाहर जाने से बचते हैं → कैब ड्राइवर की सवारी कम हो जाती है
  • ऑनलाइन ऑर्डर घटते हैं → डिलीवरी बॉय को कम काम मिलता है
  • लोग मरम्मत या घर की सजावट टालते हैं → प्लंबर, कारपेंटर, पेंटर को काम नहीं मिलता
  • सफाई, रंगाई-पुताई, लकड़ी का काम जैसे घरेलू सुधार रुक जाते हैं

इससे सेवा क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी बेरोज़गारी या कम आय की चपेट में आ जाते हैं। चक्र और तेज़ी से आगे बढ़ता है।

9 निर्माण क्षेत्र का ठप होना

निर्माण कार्य (जैसे मकान बनवाना, दुकान की मरम्मत, अन्य निर्माण आदि) भी प्रभावित होने लगते हैं। जब लोग पैसा बचाने लगते हैं तो घरों और दुकानों की मरम्मत या नया निर्माण टाल देते हैं।

इससे राजमिस्त्री, कारपेंटर, पेंटर, बेलदार और मजदूरों का काम रुकने लगता है। सीमेंट, ईंट, लकड़ी, रंग, पाइप जैसे सामान की बिक्री भी घट जाती है। निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले लाखों लोग बेरोज़गारी और कम आय का सामना करते हैं। यह चक्र को और गहराता है।

10 कृषि क्षेत्र पर प्रभाव

जब बाजार में मांग घटती है, तो इसका असर कृषि क्षेत्र पर भी पड़ता है:

  • किसान की उपज की कीमतें गिर जाती हैं, जिससे उन्हें घाटा होता है
  • घाटा होने से किसान अगली फसल में निवेश (बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई) कम कर देते हैं
  • इससे उत्पादन घटता है और ग्रामीण कृषि आधारित श्रमिक (मजदूर, ट्रैक्टर ड्राइवर, मंडी कर्मी आदि) भी बेरोज़गारी का सामना करते हैं
  • कृषि क्षेत्र की कमजोरी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था धीमी हो जाती है और बेरोज़गारी का दायरा और बढ़ता है
11 सरकार की कमाई घटना

लोग कम खरीदते हैं → कम खर्च करते हैं → दुकानों में ग्राहक कम होते हैं → सरकार को टैक्स के विभिन्न स्रोतों से राजस्व कम मिलने लगता है।

सरकार टैक्स बढ़ाकर या नए टैक्स लगाकर कमाई बढ़ाने की कोशिश करती है। इससे महंगाई और बढ़ती है। महंगाई के कारण लोग कम वस्तुयें ख़रीद पाते हैं, जिससे डिमांड और घटती है। टैक्स बढ़ाने के बावजूद सरकार की कमाई कम होती रहती है।

12 सरकारी खर्च में कटौती

टैक्स बढ़ाने के बावजूद सरकार की कमाई कम होती है। सरकार जब राजस्व की कमी से जूझती है, तो वह खर्चों में कटौती करना शुरू करती है। इसका असर सरकारी योजनाओं पर पड़ता है। अस्पताल, स्कूल व अन्य सामाजिक विकास से समन्धित योजनाओं का विस्तार या निर्माण रुक जाता है। सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

13 सरकारी नौकरियाँ रुकना

सरकार जब राजस्व की कमी से जूझती है, तो वह खर्चों में कटौती करती है। इसका असर सरकारी नौकरियों पर पड़ता है:

  • नई भर्तियाँ रोक दी जाती हैं
  • खाली पद लंबे समय तक खाली रह जाते हैं

इससे लाखों युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाती और वे बेरोज़गारी के शिकार हो जाते हैं। यह बेरोज़गारी के चक्र को और तेज़ करता है।

यह एक गोल-गोल चलता हुआ चक्र (विकट मल्टीप्लायर इफेक्ट) बन जाता है: बेरोज़गारी → कम खर्च → कम मांग → और बेरोज़गारी → और कम खर्च → और कम मांग।

इससे न केवल आम आदमी, बल्कि दुकानदार, कंपनियाँ, मजदूर, और सरकार तक प्रभावित होती है।

📌 इन चक्रों का सामाजिक और मानसिक प्रभाव

बेरोज़गारी और आर्थिक संकट का असर केवल आय पर नहीं, बल्कि लोगों के मानसिक और सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है:

  • लंबे समय तक बेरोज़गार रहने से लोग निराशा, तनाव और अवसाद का शिकार होने लगते हैं
  • परिवारों में कलह, घरेलू हिंसा और आपसी रिश्तों में दरार बढ़ जाती है
  • युवाओं में आत्मविश्वास की कमी और भविष्य के प्रति डर घर कर जाता है
  • मानसिक बीमारियाँ और आत्महत्या के मामले बढ़ सकते हैं
  • समाज में असुरक्षा, हताशा और अपराध की प्रवृत्ति बढ़ती है

📊 सरकार के वादे और योजनाएँ

लेखक का मानना है कि इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए सरकार के पास कई स्पष्ट और सुसंगत योजनाएँ थीं। मोदी सरकार ने इन्हीं योजनाओं के आधार पर कई वादे किए थे:

  • हर साल एक करोड़ नौकरियाँ
  • हर परिवार को पक्का घर -- प्रधानमंत्री आवास योजना
  • 100 स्मार्ट सिटी
  • "हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज़ में सफर करेगा"

इन वादों  ने देश को एक आशावादी भविष्य का सपना दिखाया था। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि इन योजनाओं में समय के साथ नौकरशाही की जड़ता, राजनीतिक हस्तक्षेप और निजी कंपनियों की भूख ने इनका स्वरूप ही बदल डाला।
अब ये योजनाएँ जन-कल्याण का माध्यम नहीं, बल्कि सत्ता और पूंजी के गठजोड़ का उपकरण बन चुकी हैं।

यह दुष्चक्र महज़  बेरोज़गारी और आर्थिक संकुचन की गणना नहीं है — यह उन करोड़ों परिवारों की ठहरी हुई ज़िंदगियों की दास्तान है, जिनका हर दिन अब काम और सम्मानजनक जीवन की तलाश में बीत रहा है

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