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प्रतीकात्मक चित्र - The Wide Angle |
लोकतंत्र की आत्मा मतदाता में बसती है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां हर चुनाव एक उत्सव की तरह मनाया जाता है, मतदाता सूची की शुद्धता और सत्यापन का मुद्दा हमेशा चर्चा का केंद्र रहा है। हाल के वर्षों में, "मतदाता सत्यापन" और "मतों की सफाई" जैसे शब्दों ने राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में एक नया आयाम जोड़ा है। खासकर बिहार और असम जैसे राज्यों में, जहां विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसी प्रक्रियाओं ने भारी विवाद को जन्म दिया है, यह मुद्दा और भी जटिल हो गया है। विपक्ष इसे "वोटबंदी" या "राजनीतिक नसबंदी" का नाम दे रहा है, जबकि चुनाव आयोग इसे मतदाता सूची को शुद्ध करने का एक नियमित कदम बताता है। इस ब्लॉग में हम इस विषय को गहराई से समझेंगे, बिहार और असम की घटनाओं, सत्यापन के लिए आवश्यक दस्तावेजों, समय सीमा, और विवाद के कारणों का विश्लेषण करेंगे। साथ ही, यह स्पष्ट करेंगे कि सत्यापन के लिए सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों में से कोई एक दस्तावेज पर्याप्त है या नहीं।
मतदाता सत्यापन क्या है?
मतदाता सत्यापन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूची में दर्ज व्यक्तियों की पहचान, नागरिकता, और पात्रता की जांच की जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल योग्य व्यक्ति ही मतदान कर सकें। भारत में, चुनाव आयोग (ECI) इस प्रक्रिया को नियमित रूप से अंजाम देता है। इसका उद्देश्य डुप्लिकेट, फर्जी, या अपात्र मतदाताओं को सूची से हटाना है।
उद्देश्य:
सटीकता: मतदाता सूची में कोई गलती न हो, जैसे कि एक ही व्यक्ति का नाम दो बार दर्ज होना।
पारदर्शिता: यह सुनिश्चित करना कि केवल भारतीय नागरिक ही मतदान करें।
निष्पक्षता: चुनाव प्रक्रिया को विश्वसनीय और निष्पक्ष बनाना।
लेकिन, इस प्रक्रिया के पीछे की मंशा और इसके कार्यान्वयन पर सवाल उठने लगे हैं। बिहार और असम में हाल की घटनाओं ने इसे "लोकतंत्र के खिलाफ साजिश" के रूप में पेश किया है।
बिहार में मतदाता सत्यापन: ताजा घटनाएं और बहस
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले, चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू करने का आदेश जारी किया। यह प्रक्रिया 2003 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रही है। इस अभियान का उद्देश्य 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची को अपडेट करना है, जिसमें से 4.96 करोड़ मतदाता 2003 की सूची में मौजूद हैं, और बाकी 2.93 करोड़ मतदाताओं को अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे।
मुख्य घटनाएं:
आदेश और समय सीमा: 24 जून को जारी आदेश के अनुसार, मतदाताओं को 25 जुलाई 2025 तक गणना प्रपत्र (enumeration forms) जमा करने होंगे। ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित होगी, और 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं। अंतिम सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी।
विपक्ष का विरोध: कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD), तृणमूल कांग्रेस (TMC), और अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को "लोकतंत्र विरोधी" और "भाजपा की मदद करने की साजिश" करार दिया है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे "वोटबंदी" कहा और दावा किया कि यह गरीब, दलित, और अल्पसंख्यक मतदाताओं को वंचित करने का प्रयास है।
कानूनी चुनौती: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि यह प्रक्रिया असंवैधानिक है और लाखों मतदाताओं, खासकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों, को मताधिकार से वंचित कर सकती है।
रैली और बयान: RJD की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने 5 जुलाई 2025 को पार्टी के 28वें स्थापना दिवस पर लोगों से कहा कि वे वोटर ID के अलावा कोई दस्तावेज न दिखाएं, क्योंकि यह गरीबों के मताधिकार को छीनने की साजिश है।
सामाजिक प्रतिक्रिया: बिहार के कई हिस्सों, जैसे दरभंगा, में अल्पसंख्यक समुदायों को डर है कि यह प्रक्रिया NRC की तरह "बैकडोर" से लागू की जा रही है।
दस्तावेजों की सूची और एक दस्तावेज की पर्याप्तता:
चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जो मतदाता सत्यापन के लिए स्वीकार्य हैं। यह उन मतदाताओं के लिए जरूरी है, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है या जो 1987 के बाद पैदा हुए हैं। इनमें शामिल हैं:
- पासपोर्ट
- जन्म प्रमाण पत्र
- जाति प्रमाण पत्र
- निवास प्रमाण पत्र
- स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र (School Leaving Certificate)
- शैक्षणिक अंक पत्र (10वीं या 12वीं)
- पैन कार्ड
- बैंक पासबुक
- डाकघर खाता पासबुक
- जमीन या संपत्ति के दस्तावेज
- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) दस्तावेज
स्पष्टता: चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, इन 11 दस्तावेजों में से कोई एक वैध दस्तावेज सत्यापन के लिए पर्याप्त है, बशर्ते वह व्यक्ति की पहचान, निवास, और पात्रता (जैसे भारतीय नागरिकता) को स्पष्ट रूप से साबित करता हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के पास निवास प्रमाण पत्र है, तो यह सत्यापन के लिए पर्याप्त हो सकता है, बशर्ते यह वैध, अपडेटेड, और प्रामाणिक हो। हालांकि, व्यावहारिक रूप से, बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) या सत्यापन अधिकारी दस्तावेज की प्रामाणिकता पर सवाल उठा सकते हैं, जिसके लिए अतिरिक्त साक्ष्य मांगे जा सकते हैं। इसलिए, सुरक्षित रहने के लिए एक से अधिक दस्तावेज (जैसे निवास प्रमाण पत्र के साथ पैन कार्ड या बैंक पासबुक) तैयार रखना उचित है।
नोट: आधार कार्ड, वोटर ID, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, और मनरेगा कार्ड इस प्रक्रिया के लिए अमान्य हैं।
समय सीमा:
- 25 जुलाई 2025: गणना प्रपत्र जमा करने की अंतिम तारीख।
- 1 अगस्त 2025: ड्राफ्ट मतदाता सूची का प्रकाशन।
- 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025: दावे और आपत्तियों की अवधि।
- 30 सितंबर 2025: अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन।
बिहार में विवाद के कारण:
कठिन दस्तावेज आवश्यकताएं: बिहार में गरीबी और अशिक्षा की दर अधिक है, और लाखों लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, या NRC जैसे दस्तावेज नहीं हैं। 2023 तक बिहार में केवल 2% लोगों के पास वैध पासपोर्ट थे।
अवास्तविक समय सीमा: 25 दिनों में 7.89 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन करना अव्यवहारिक है। कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने इसे असंभव बताया।
चुनाव से पहले समय: विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2025 में होने हैं, और इस समय SIR शुरू करना संदिग्ध माना जा रहा है। विपक्ष का दावा है कि यह सत्तारूढ़ NDA को फायदा पहुंचाने के लिए है।
हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर प्रभाव: दलित, अति पिछड़ा वर्ग (EBC), अल्पसंख्यक, और प्रवासी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। ADR की याचिका में कहा गया है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 (वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करती है।
NRC का डर: कई लोग इसे असम के NRC जैसी प्रक्रिया का "बैकडोर" संस्करण मान रहे हैं। दरभंगा जैसे क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदायों में डर का माहौल है।
आधार और अन्य सामान्य दस्तावेजों का अमान्य होना: आधार, राशन कार्ड, और वोटर ID जैसे सामान्य दस्तावेजों को अमान्य करने से भ्रम और आक्रोश बढ़ा है।
असम में मतदाता सत्यापन और NRC: एक विवादास्पद उदाहरण
असम में मतदाता सत्यापन और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की प्रक्रिया ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया। असम में लंबे समय से अवैध प्रवास का मुद्दा रहा है, खासकर बांग्लादेश से आने वाले प्रवासियों को लेकर।
असम में मुख्य घटनाएं:
NRC की प्रक्रिया: NRC का उद्देश्य उन लोगों की पहचान करना था, जो 24 मार्च 1971 से पहले या उसके बाद भारत में रह रहे थे। इसके लिए लोगों को अपने और अपने पूर्वजों के दस्तावेज, जैसे 1951 की NRC सूची, 1971 की मतदाता सूची, या अन्य सरकारी दस्तावेज, जमा करने थे। 2019 में, अंतिम NRC सूची से लगभग 19 लाख लोग बाहर हो गए।
प्रभाव: इन 19 लाख लोगों को न केवल मतदान का अधिकार खोने का डर था, बल्कि उनकी नागरिकता भी खतरे में पड़ गई। कई लोग डिटेंशन सेंटर में भेजे गए, और कुछ मामलों में परिवार बिखर गए।
आलोचना: सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने इसे अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुस्लिम और बंगाली मूल के लोगों, के खिलाफ एक सुनियोजित कदम बताया। बारपेटा और धुबरी जैसे क्षेत्रों में यह प्रक्रिया विशेष रूप से विवादास्पद रही।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव: NRC ने असम में सामाजिक तनाव को बढ़ाया और राजनीतिक ध्रुवीकरण को गहरा किया। विपक्षी दलों ने इसे "भाजपा की विभाजनकारी नीति" का हिस्सा बताया, जबकि सत्तारूढ़ दल ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा करार दिया।
असम और बिहार की समानताएं:
दोनों राज्यों में अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को निशाना बनाए जाने का आरोप है।
दस्तावेजों की कमी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि गरीब और अशिक्षित लोग अक्सर जन्म प्रमाण पत्र या संपत्ति के दस्तावेज नहीं रखते।
दोनों प्रक्रियाओं को चुनाव से ठीक पहले शुरू करने के समय पर सवाल उठे हैं।
मतों की सफाई: एक विवादास्पद मुद्दा
"मतों की सफाई" शब्द का उपयोग तब होता है, जब मतदाता सूची से कुछ व्यक्तियों या समुदायों को हटाने की प्रक्रिया को संदिग्ध नजरों से देखा जाता है। बिहार और असम में, विपक्ष का आरोप है कि इन प्रक्रियाओं का उद्देश्य उन मतदाताओं को हटाना है, जो पारंपरिक रूप से गैर-NDA दलों को वोट देते हैं।
राजनीतिक नसबंदी का आरोप
"राजनीतिक नसबंदी" शब्द का तात्पर्य यह है कि कुछ राजनीतिक दल इस प्रक्रिया का उपयोग अपने विरोधी मतदाताओं को हटाने के लिए कर रहे हैं। बिहार में विपक्ष का दावा है कि SIR का समय और तरीका NDA को फायदा पहुंचाने के लिए चुना गया है, जबकि असम में NRC को एक समुदाय विशेष को निशाना बनाने का उपकरण माना गया।
कैसे होती है यह "राजनीतिक नसबंदी"?
चुनिंदा सत्यापन: कुछ क्षेत्रों में, जहां दलित, EBC, या अल्पसंख्यक समुदायों की आबादी अधिक है, वहां सत्यापन प्रक्रिया को और सख्त किया जा सकता है।
दस्तावेजों की कमी: गरीब और प्रवासी मजदूरों के पास अक्सर जन्म प्रमाण पत्र या संपत्ति के दस्तावेज नहीं होते, जिससे उनकी मतदाता सूची से हटने की संभावना बढ़ जाती है।
प्रशासनिक पक्षपात: बिहार में विपक्ष ने बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) और स्थानीय प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाया है। असम में भी स्थानीय अधिकारियों पर चुनिंदा कार्रवाई के आरोप लगे थे।
ऐतिहासिक संदर्भ
1990 के दशक में, महाराष्ट्र में "ऑपरेशन पुष्पक" नामक एक अभियान चलाया गया था, जिसका उद्देश्य मुंबई में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को मतदाता सूची से हटाना था। लेकिन इस प्रक्रिया में कई भारतीय नागरिक, खासकर गरीब मुस्लिम समुदाय के लोग, प्रभावित हुए।
लोकतंत्र पर प्रभाव
लोकतंत्र का मूल सिद्धांत यह है कि प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार हो। लेकिन अगर SIR या NRC जैसी प्रक्रियाओं में लाखों लोग अपने इस अधिकार से वंचित हो जाते हैं, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है।
सकारात्मक प्रभाव:
विश्वसनीयता: साफ-सुथरी मतदाता सूची से चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बढ़ता है।
कुशलता: डुप्लिकेट और फर्जी मतदाताओं को हटाने से मतगणना और प्रबंधन आसान होता है।
नकारात्मक प्रभाव:
वंचित समुदाय: गरीब, दलित, EBC, और अल्पसंख्यक समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।
राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह प्रक्रिया समाज में विभाजन को बढ़ावा दे सकती है।
विश्वास की कमी: अगर लोग यह महसूस करते हैं कि सत्यापन प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण है, तो वे चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा खो सकते हैं।
समाधान और सुझाव
इस जटिल मुद्दे का समाधान आसान नहीं है, लेकिन कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:
- पारदर्शी प्रक्रिया: मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाना होगा।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।
- दस्तावेजों की सुगमता: आधार, राशन कार्ड, और मनरेगा कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को स्वीकार करना चाहिए।
- विस्तारित समय सीमा: बिहार में 25 दिनों की समय सीमा को बढ़ाकर 2-3 महीने करना चाहिए।
- निष्पक्ष निगरानी: स्वतंत्र संगठनों और नागरिक समाज को निगरानी का अधिकार देना चाहिए।
- असम के अनुभव से सीख: NRC की गलतियों, जैसे जटिल दस्तावेजीकरण और सामाजिक तनाव, को दोहराने से बचना चाहिए।
- दस्तावेजों की स्पष्टता: यह स्पष्ट करना चाहिए कि एक वैध दस्तावेज पर्याप्त है, और BLO को अनावश्यक रूप से अतिरिक्त दस्तावेज मांगने से रोका जाए।
निष्कर्ष
बिहार और असम में मतदाता सत्यापन और मतों की सफाई की प्रक्रिया एक दोधारी तलवार है। एक ओर, यह मतदाता सूची को शुद्ध करने का एक जरूरी कदम हो सकता है, लेकिन दूसरी ओर, इसके गलत कार्यान्वयन से लाखों लोग अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। बिहार में, 11 दस्तावेजों में से कोई एक वैध दस्तावेज (जैसे निवास प्रमाण पत्र) सत्यापन के लिए पर्याप्त है, बशर्ते वह प्रामाणिक और अपNFL Updated हो। हालांकि, प्रशासनिक कठोरता और कम समय सीमा के कारण अतिरिक्त दस्तावेज तैयार रखना उचित है। असम के NRC अनुभव से सीख लेते हुए, चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी पात्र मतदाता इस प्रक्रिया के कारण अपने अधिकार से वंचित न हो। अन्यथा, "लोकतंत्र के नाम पर राजनीतिक नसबंदी" का आरोप गहराता जाएगा, और यह हमारे सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है।
लोकतंत्र तभी सशक्त होगा, जब प्रत्येक नागरिक की आवाज सुनी जाएगी। इसलिए, मतदाता सत्यापन को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, न कि हथियार के रूप में।
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