वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार जब पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई, तो देश के नागरिकों के मन में एक नई आशा और विश्वास जगा। वादों की झड़ी लगाई गई --- जिनमें विकास, सुशासन, पारदर्शिता, और आत्मनिर्भरता के बड़े-बड़े संकल्प शामिल थे। आम जनता को भरोसा दिलाया गया कि अब भारत एक नई दिशा में आगे बढ़ेगा, जहाँ हर व्यक्ति को रोज़गार मिलेगा, किसान समृद्ध होगा, भ्रष्टाचार समाप्त होगा और देश वैश्विक मंच पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाएगा।
एक दशक बीत जाने के बाद यह आवश्यक हो गया है कि उन वादों का मूल्यांकन किया जाए जो गूंजते नारों और आकर्षक घोषणाओं के रूप में हमारे सामने आए थे। क्या वे वादे ज़मीनी हकीकत में बदले? क्या उनका कोई ठोस परिणाम सामने आया? क्या वे महज़ चुनावी घोषणाएं थीं या भारत के भविष्य की सच्ची रूपरेखा?
यह लेख इन्हीं सवालों की तह तक जाने का प्रयास है।
📌 वादे, स्थिति और संभावनाएँ: समेकित तालिका
🔹 वादे | 🔹 स्थिति | 🔹 संभावना |
---|---|---|
हर साल 2 करोड़ नौकरियाँ | बेरोजगारी दर में वृद्धि, CMIE व NSSO रिपोर्ट से पुष्टि | यदि कौशल विकास, MSME प्रोत्साहन और सेवा क्षेत्र का विस्तार किया जाए तो यह लक्ष्य संभव है। |
"न खाऊँगा, न खाने दूँगा" (भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस) | भ्रष्टाचार जमीनी स्तर पर अब भी व्यापक; घोटालों में वृद्धि, पारदर्शिता की भारी कमी; | ई-गवर्नेंस, पारदर्शिता कानून और राजनीतिक इच्छाशक्ति से यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। |
किसानों की आय दोगुनी (2022 तक) | लागत बढ़ी, समर्थन मूल्य सीमित, आत्महत्याएँ जारी | न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी, प्रोसेसिंग और निर्यात को बढ़ावा देकर यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। |
सभी को घर (2022 तक) | PMAY के लाखों मकान अधूरे, शहरी बेघरों की संख्या जस की तस | यदि निर्माण की गति, बजट और निगरानी प्रणाली मजबूत की जाए तो यह लक्ष्य व्यावहारिक है। |
शिक्षा व स्वास्थ्य पर GDP का 6% खर्च | शिक्षा ~3% और स्वास्थ्य ~2% तक सीमित | शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश की राजनीतिक प्राथमिकता बढ़ाकर इसे हासिल किया जा सकता है। |
देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना (Make in India) | चीन पर निर्भरता बरकरार, घरेलू विनिर्माण क्षेत्र में ठोस वृद्धि नहीं, निर्यात और रोजगार अपेक्षा से काफी कम | अनुसंधान व तकनीकी नवाचार में निवेश और स्थिर व्यापार नीति से मैन्युफैक्चरिंग को गति दी जा सकती है। |
पेट्रोल-डीज़ल सस्ता करना | कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर, टैक्स कटौती केवल चुनावी मौसम में | वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और कर ढांचे की समीक्षा से कीमतों में राहत संभव है। |
गैस सिलेंडर सस्ता करना | कीमतें ₹850 के पार, रिफिल दर में गिरावट | सब्सिडी नीति में पारदर्शिता और उपभोक्ता केंद्रित वितरण से सुधार संभव है। |
राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा | रक्षा बजट लगभग ₹6.2 लाख करोड़ (GDP का ~2.0%), पर विशेषज्ञों के अनुसार यह 3% तक होना चाहिए; स्क्वाड्रन की कमी और हथियारों में आत्मनिर्भरता अभी सीमित | आत्मनिर्भर भारत के तहत रक्षा उत्पादन, अनुसंधान और निजी भागीदारी से यह लक्ष्य संभव है। |
🧠 ध्यान रखने योग्य बिंदु
- वादों का मूल्यांकन केवल आंकड़ों से नहीं, ज़मीनी अनुभवों से भी होना चाहिए।
- योजनाओं की सफलता में पारदर्शिता, जवाबदेही और समयबद्धता सबसे अहम हैं।
- मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका केवल समर्थन की नहीं, सतत निगरानी और आलोचनात्मक मूल्यांकन की भी होनी चाहिए।
🔍 The Wide Angle का दृष्टिकोण
'The Wide Angle' का मानना है कि लोकतंत्र केवल वादों की सूची नहीं होता --- वह जिम्मेदारी, पारदर्शिता और जनसरोकार से जुड़ा एक जीवंत संवाद है।
हम मानते हैं कि:
- वादे तभी अर्थ रखते हैं जब वे ज़मीन पर उतरें;
- योजनाएं तभी सार्थक होती हैं जब उनका उद्देश्य आम जन का सशक्तिकरण हो, न कि सत्ता का सुदृढ़ीकरण;
- और बदलाव तभी स्थायी होता है जब वह राजनीतिक घोषणा पत्र से निकलकर जमीनी सच्चाई बन जाए।
हम यह भी मानते हैं कि योजनाएं विफल नहीं होतीं --- उन्हें विफल किया जाता है। जब जनभागीदारी कमज़ोर हो, जब संस्थागत पारदर्शिता न हो, और जब मीडिया की भूमिका प्रश्न पूछने के बजाय प्रचार करने तक सीमित रह जाए, तब 'आशा' और 'यथार्थ' के बीच खाई बढ़ जाती है।
यदि इन प्रमुख योजनाओं:
- • Digital India,
- • Adarsh Gram - Smart City Yojana,
- • Make in India,
- • Minimum Government, Maximum Governance,
- • और आत्मनिर्भर भारत
का क्रियान्वयन निष्पक्ष, पारदर्शी और गैर-राजनीतिक रूप में किया गया होता;
यदि संस्थागत जवाबदेही और ज़मीनी स्तर पर भागीदारी को प्राथमिकता दी गई होती;
तो आज भारत केवल विकास की बात नहीं कर रहा होता, बल्कि उसका वैश्विक उदाहरण बन चुका होता।
दुर्भाग्यवश, इन योजनाओं के मूल स्वरूप में भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा जानबूझकर हस्तक्षेप किया गया। योजनाओं को निजी स्वार्थ और राजनीतिक लाभ के अनुसार मोड़ दिया गया, जिससे इनका असली उद्देश्य विकृत हो गया।
नतीजा यह रहा कि अरबों-खरबों रुपये जनता के संसाधनों से खर्च हुए, लेकिन इन योजनाओं का कोई ठोस और दीर्घकालिक असर ज़मीनी स्तर पर दिखाई नहीं दिया। जिन समस्याओं के समाधान की आशा थी, वे जस की तस बनी रहीं --- या और अधिक गहराती चली गईं।
यह लेख केवल एक राजनीतिक विश्लेषण नहीं, बल्कि एक सामाजिक आईना है --- ताकि हम सब मिलकर यह तय कर सकें कि भविष्य के भारत की दिशा कैसी होनी चाहिए।
🔧 योजनाओं का उद्देश्य और कार्यान्वयन की वास्तविकता
उपरोक्त योजनाओं का मूलभूत उद्देश्य भारत को डिजिटल, स्मार्ट, आत्मनिर्भर और पारदर्शी प्रशासन की दिशा में ले जाना था। यदि इनका क्रियान्वयन एक स्पष्ट नीति, ज़मीनी भागीदारी और संस्थागत पारदर्शिता के साथ किया जाता, तो यह सभी वादे --- जिनमें रोज़गार, किसान समृद्धि, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और सबको आवास जैसी महत्वाकांक्षाएं शामिल हैं --- पूरी तरह संभव थे।
✅ निष्कर्ष
यह ब्लॉग न सिर्फ सरकार की नीतियों की समीक्षा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि यदि:
- योजनाओं को निष्पक्ष, पारदर्शी और उद्देश्यपरक तरीके से लागू किया जाए,
- जनता को केवल लाभार्थी नहीं, भागीदार समझा जाए,
- और राजनीतिक इच्छाशक्ति को निजी लाभ से ऊपर रखा जाए ---
तो सबसे कठिन दिखने वाले वादे भी हकीकत में बदल सकते हैं।
🤝 संपर्क और सहभागिता
The Wide Angle की टीम भारत के हर उस नागरिक, नीति-निर्माता और जिम्मेदार व्यक्ति से अपील करती है जो सच में बदलाव लाना चाहता है।
चाहे आप सत्ता पक्ष, विपक्ष, जागरूक नागरिक, प्रशासनिक अधिकारी, या वर्तमान अथवा भावी शीर्ष नेतृत्व हों --- यदि आप इन योजनाओं के मूल स्वरूप को गहराई से जानना, समझना और उन्हें निष्पक्षता व पारदर्शिता के साथ प्रभावी रूप से क्रियान्वित करना चाहते हैं, तो 'The Wide Angle' से संपर्क करें।
हमारे पास तथ्य-आधारित शोध, नीति विश्लेषण, जनसंवाद की गहरी समझ और ज़मीनी क्रियान्वयन के लिए व्यवहारिक रणनीतियाँ उपलब्ध हैं।
"यह संवाद केवल समीक्षा या मूल्यांकन तक सीमित नहीं --- यह भागीदारी, सहयोग और समाधान की दिशा में एक निर्माणात्मक साझेदारी का निमंत्रण है।"
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